झवेरचन्द मेघाणी

झवेरचन्द मेघाणी

नेविगेशन पर जाएँखोज पर जाएँ

झवेरचन्द मेघाणी
जन्म 28 अगस्त 1896
चोटिला, सौराष्ट्र, गुजरात
मौत 9 मार्च 1947 (उम्र 50)
[बोटाद], सौराष्ट्र, गुजरात
पेशा कवि, नाटककार, सम्पादक, लोक-साहित्यकार
काल स्वतन्त्रता के पूर्व
खिताब रणजीतराम सुवर्ण चन्द्रक
(1928)

हस्ताक्षर
वेबसाइट

झवेरचंद मेघाणी (१८९६ – १९४७) गुजराती साहित्यकार तथा पत्रकार थे। गुजराती-लोकसाहित्य के क्षेत्र में मेघाणी का स्थान सर्वोपरि है। वे सफल कवि ही नहीं, उपन्यासकारकहानीकारनाटककारनिबंधकारजीवनीलेखक तथा अनुवादक भी थे।

रचनाएँ

मेघाणी जी की रचनाओं में गांधीवादी प्रभाव से युक्त उत्कृष्ट देशप्रेम तथा स्वातंत्र्य-भावना प्राय: सर्वत्र प्राप्त होती है। अपनी इसी भावना के कारण उन्हे अंग्रजी सरकार द्वारा दिया गया दो वर्ष कारावास का दंड भी भुगतना पड़ा तथा उनकी ‘सिंघुड़ा’ नामक कृति भी जब्त कर ली गई। अपनी मातृभाषा गुजराती के अतिरिक्त उनका बँगला और अंग्रेजी पर भी सम्यक् अधिकार था। इन भाषाओं से उन्होंने अनेक सफल अनुवाद किए हैं। सारे काठियावाड़ का भ्रमण करने के उपरांत वे ‘सौराष्ट्र साप्ताहिक’ के संपादन में सहायता करने लगे तथा ‘तंत्री मंडल’ के सदस्य हो गए। इस प्रकार उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया जो जीविका की दृष्टि से कालांतर में उनका प्रमुख कार्य क्षेत्र बन गया। लोक साहित्य का अन्वेषण एवं अनुशीलन उनका मुख्यतम ध्येय था। उन्होंने लुप्तप्राय और उपेक्षित लोक साहित्य को पुनरूज्जीवन तथा प्रतिष्ठा प्रदान की। उनका निम्नलिखित साहित्य महत्वपूर्ण है:

काव्य — युगवंदना, वेणी नां फूल, किल्लोल

नाटक — बठेलां

कथा साहित्य — समरांगण, गुजरात नो जय (२ भाग), सोरठ बहेतां पाणी, रा गंगाजलीओ, आदि।

लोकगीत संग्रह — रढियाली रात (४ भाग), सौराष्ट्र नी रसाघार (५ भाग) सोरठी गीत कथाओ।

यात्रा साहित्य — सौराष्ट्र ना खंडेंरामा

आलोचना साहित्य — वेरान मां परिभ्रमण तथा जन्मभूमि में प्रकाशित अनेक स्फुट लेख।

जीवन चरित — देशदीपको, ठक्ककर बापा, दयानंद सरस्वती, इत्यादि।

आत्मचरित — परकंमा

इतिहास ग्रंथ — एशियालुं कलंक, हंगेरी नो तारणहार सलगतुं आयरलैंड, मिसर नो मुक्तिसंग्राम

अनुवाद — कथा ओ काहिनी, कुरबानी नी कथाओ, राणो प्रताप, राजाराणी, शाहजहाँ

मेघाणी की कविताओं में सोरठ (सौराष्ट्र) की आत्मा और कथाओं में उसके संवेदन का सजीव चित्र उपलब्ध होता है। उनके शक्तिशाली स्वर ने सारे गुजरात में अहिंसक क्रांति की प्रखर सजगता उत्पन्न की।

हजारो वर्षनो जूनो अमारी वेदनाओ।
कलेजा चीरती कंपावती अम भयकथाओ।।

जैसी पंक्तियाँ इसका प्रमाण हैं। उनके ‘छेल्ले कटोरे’ में बापू का ‘शाश्वत थालेखन’ मिलता। इस काव्य को कविकंठ से सुनकर मुग्ध जनता ने उन्हें ‘राष्ट्रीय शायर’ की उपाधि प्रदान की। लोकसाहित्य और लोकगीतों से संबद्ध उनकी प्राय: सभी कृत्तियाँ महत्ता रखती हैं। किंतु ‘गुजरात नो जय’, ‘सौराष्ट्रनी रसधार’ तथा ‘रोढियाली रात’ सर्वश्रेष्ठ हैं।

by झवेरचन्द मेघाणी written by झवेरचन्द मेघाणी झवेरचन्द मेघाणी

2 thoughts on “झवेरचन्द मेघाणी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *